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कोविड में दिल्ली से ऋषिकेश साइकल यात्रा भाग पांच

 भाग पांच - निंद्रा

तो वो रात आ गई, अगली सुबह निकलना था रात आँखों में ही कट गई, नींद भी आने का नाम नहीं ले रही थी, एक या दो बजे झपकी लगी तो पहुँच गया ऋषिकेश,
मैं खड़ा हूँ और चारो तरफ आकर्षक पहाड़, कभी मैं किसी पहाड़ कि चोटी पर खड़ा हूँ तो कभी मैं गंगा किनारे पहुँच गया, गंगा मैया का प्रबल प्रवाह, इतने सुन्दर मनोहारी द्रश्य में पीछे से पुलिस वाला आ गया, यहाँ क्या कर रहा है? बे..किसने आने दिया? पता नहीं है कोविड चल रहा है...
खैर नींद और स्वपन के ऊपर रिसर्च कर के मैंने सूत्र बनाया है कि सपने में होने वाली क्रियाएं और वास्तविक में सोये शरीर में एक लगभग मिलीमीटर बराबर एक मीटर है, और एक मिलीमीटर से अधिक हिले तो मतलब अनंत दूरी तक जा सकते हो, अर्थात अगर मैं स्वपन में एक कदम रखता हूँ तो पैर का अंगूठा जरा सा हिलेगा और हमें स्वपन में वास्तविक एहसास होगा कि हमने कदम रख दिया है, इस बात को गंभीरता से न ले लेना...ऐसी मजेदार खोजें मैं हर दिन रात करता रहता हूँ 😊
खैर, ऐसे ही जैसे ही गंगा तट वाले उस पुलिस वाले ने मुझे डंडा मारा तो मुझे शरीर में झटका सा लगा और बिस्तर पर पड़े पड़े, मैं सच में हिल गया और नींद टूट गई, पानी पिया, मोबाइल, व्हाट्सएप चेक किया, आँखों में ही वो रात कटी, सुबह एक दो झपकी लगी भी पर फिर सुबह तीन बजे के अलार्म ने वो झपकियाँ भी तोड़ दी |
भाग छ – प्रारंभ
अब मुझे तैयार होना था, सर्दी का समय था तो अच्छे से कपडे पहन लिए
ताजा पानी बोतल में भर कर साइकल में बोटल स्टैंड में लगा दिया आगे पीछे की साइकल लाईट फिट की, और सुबह चार बजे गेट खोला और प्रस्थान किया, माता ने गेट बंद करने से पहले बोला
“ध्यान से जाइयो”
ये बात माँ ने इसलिए बोली, वो जानती उस समय मेरे मन की उथल पुथल, पर वो संमय ऐसा था यदि मैं एक प्रतिशत भी अपनी घबराहट प्रदर्शित कर देता, अगर मेरी आवाज जरा सी भी लड़खड़ा जाती या चेहरे पर कोई भाव दिख जाता तो कोई न जाने देता मुझे, इसलिए उस समय थोडा कठोर बन कर रहा, और द्रढ़ता से बोला “हाँ हां, आप चिंता मत करो” कहकर साइकल मैंने जूते की सहायता से पेडल ऊपर किया और अपने पूरे शरीर का भार पैडल पर डाल के, कूद के साइकल पर सवार हुआ और दूसरे ही पल मेरी साइकल गली से बाहर थी |
इधर मैं अपनी साइकल पर आगे बढ़ रहा था .....
साइकल चलाने में वैसे तो बहुत सी अच्छी बातें है पर एक बात ये है कि जब आप साइकल चला रहे होते हो, तो एक तो आप दुखी नहीं होते, शायद इसका कारण ये है कि दिमाग का कुछ हिस्सा पैडल मारने, बलेंस बनाए रखने में लगा रहता है और कुछ हिस्सा लक्ष्य की ओर और कुछ रास्ते कि ओर, दुःख की तरफ दिमाग जाएगा कहाँ से... ये सब मेरी अपनी थ्योरी है, वैसे वैज्ञानिकों ने ये सिद्ध किया है और बताया है कि साइकल चलाते संमय हमारे शरीर में रक्त का प्रवाह और ऑक्सीजन बेहतर रहता है तो दिमाग शांत अवस्था में रहता है, एक और बात जो उन्होंने बताई और मैंने खुद भी महसूस की, जब भी मैं साइकल चलाता हूँ तो आनंद का अनुभव करता हूँ उसका कारण है साइकल चलानें से एरोबिक एक्टिविटी होने से एंडोर्फिन हार्मोन का हमारे शरीर में रिलीज होना, जो हमें आनंद का अनुभव प्रदान करने का कारक है
सर्दी में वैसे भी इतनी जल्दी उजाला कहाँ होता है, तो काफी अँधेरा था, रात ही समझ लो,
इधर गली से निकलते समय, ठण्ड की वजह से आलस में किसी कुत्ते ने भी नहीं भोंका, सर्दी में कुत्ते भी गलियों के किसी कोने में घुसे रहते हैं, या यूँ कहें कि उन्हें भी इतनी सर्दी लग रही होती है कि वे भोंकने का आलस कर जाते हैं जबकि गर्मियों में ऐसा नहीं होता, लपक लपक कर साइकल के पीछे पैर पकड़ने को भागते हैं सुसरे | तो इसी ठंडी अँधेरी सुबह में मैं निकल पड़ा था, सुनसान सड़कों पर अकेले
भाग आठ – नहर के किनारे किनारे
पहला बोर्डर उत्तरप्रदेश का पड़ता, खबरों में तो सुन रहे थे कि जाने नहीं दिया जा रहा,
मैं पूर्वी दिल्ली, शाहदरा रहता हूँ ,तो जा तो हिंडन हवाई अड्डे की तरफ से भी सकता था, जो कि छोटा पड़ता लेकिन वो रास्ता मुझे पसंद नहीं, तो गाजीपुर से ऊपर चढ़ गया, पुलिस वाले थे, पर वहां मोर्निंग वाक करने वाले और साइकल चलाने वालो का क्रेज चला हुआ था, कोविड काल में, तो उसका लाभ मुझे वहां मिला, किसी ने मुझे वहां नहीं रोका,फिर मैंने राजनगर एक्सटेंशन का रास्ता पकड़ा, राजनगर एलिवेटेड रोड के द्वारा, जो दूरी में भोपुरा वाले रस्ते से उससे अधिक था, और अँधेरे अँधेरे में चलता हुआ, मैं पहुंचा मुरादनगर की नहर जिसे छोटा हरिद्वार भी कहते हैं, यहाँ हम प्राय: आते रहते हैं साइकल से.. आते हैं नहाते हैं, तो ये एरिया मेरा देखा हुआ था .. वहां से मेरे सामने दो रस्ते थे, मैंने वहां से नहर के साथ वाला रास्ता लिया, क्योंकि मैंने सुना था कि ये रास्ता काफी सुन्दर है, शांत है|
और सच में रास्ता काफी सुन्दर था सीधी सड़क, बराबर में गंगाजी मानो हाथ पकड़ कर रास्ता दिखाते हुए साथ साथ चल रही थी, किनारों पर कहीं कुशा घास तो कहीं सरकंडे उगे हुए थे,
इसी मार्ग पर मैं तेजी से आगे बढ़ रहा था कि पीछे से ट्रक तेज आवाज करते हुए तेज स्पीड में साइकल के एक मीटर के भीतर दूरी से गुजरा, एक बार को आत्मा काँप गई, सड़क बनी अच्छी हुए है तारकोल की पर सिंगल रोड है, कोई डिवाईडर नहीं जिसका जहाँ मन करे चलो और एक बार जो ये ट्रकों का आने जाने का सिलसिला शुरू हुआ तो खतम होने का नाम न ले, अच्छा खास अँधेरा था, तो कोई कुचल के चला जाता तो कोई बड़ी बात न थी,
मनुष्य कठिन कार्यों को करने के लिए योजनाये तो अपनी बुद्धि से बनाता है पर समस्याओं का वास्तविक सामना होने पर ये धरी की धरी रह जाती हैं तब ईश्वर ही याद आते हैं, जो हमें धैर्य प्रदान करते हैं और धैर्य रख कर समय बीतता है, और समस्याएं भी सुलझ जाती है, हमने भी राम राम, शिव शिव का स्मरण किया, और भोले की झाल के आस पास कोई गाँव आने तक उजाला हो चला और साथ ही ट्रकों का आना जाना भी समाप्त हो गया ज्यादा उस मार्ग की जानकारी तो नहीं परन्तु वहां कही से कोई रास्ता कटता है जिधर सारे ट्रक मुड जाते हैं |
ये मेरे लिए वरदान सिद्ध हुआ, उजाला निकल चुका था और मैं लगभग साठ से सत्तर किलोमीटर आगे आ चुका था मेरठ पार कर चुका था , तब तो हर गाँव का नाम पढ़ते हुए जा रहा था पर अब याद नहीं |
बीच में एक दो बार टॉयलेट करने के लिए साइकल रोकी, पानी पिया पर ढंग से से कहीं नहीं रुका, यहाँ का प्लान बनाते समय मैंने सोच लिया था कि मैं पहला ब्रेक सौ किलोमीटर पर लूँगा, अगर पहला ब्रेक सौ पर लिया तो आराम से पहुँच जाऊँगा, मैं काफी तेजी से आगे बढ़ रहा था लगभग पच्चीस किलोमीटर प्रति घंटा, साइकल के हिसाब से काफी थी और क्योंकि लम्बा जाना था तो उर्जा भी बचा कर रखनी थी..
मुजफ्फरनगर पर आदित्य भाई का फ़ोन आ गया कहाँ पहुंचे मैंने बता दिया मुजफ्फरनगर पर हूँ उन्होंने कहा काफी तेज चल रहे हो आराम से आओ, ज्यादा हुआ तो मैं गाडी लेकर बोर्डर पर आ जाऊँगा साइकल गाडी में डाल लेंगे इस बात ने दिल को बड़ी तस्सली दी पर ऐसा करना नहीं था तो स्पीड वही रही |
अब उजाला धूप में परिवर्तित हो चला था, साइकल चलाते चलाते पसीना आने लगा था, तो रुक कर ऊपर की विंड चीटर उतार दी , ठंडी ठंडी हवा लगी तो मजा आनें लगा, अब मौसम खुशनुमा था और रास्ते पर उस लेवल का ट्रैफिक नहीं था, तो मैंने ब्लूटूथ स्पीकर ऑन किया, अपनी पसंद के गाने चला लिए और गानों की धुन और अपनी धुन में झूमता हुआ मैं आगे बढ़ चला |
नदी किनारे चलते चलते एक दोराहा आ गया वहां एक दुकान कम घर दिखा, जहाँ एक वृद्ध जोड़ा घर के काम निबटा रहा था, मैं कंफ्यूज था कि किस तरफ जाना है तो उन्ही बाबा से पूछ लिया
बाबा हरिद्वार जाने का रास्ता कौन सा है, उन्होंने कहा गंगा किनारे ही चलता जा, पीछे से अम्मा ने डपट दिया बाबा को, उधर सारा रास्ता टूटा पड़ा है कैसे जाएगा, भैया इधर वाले रास्ते से चले जाओ, वहां से चले आना, बाबा की हिम्मत न हुई कुछ बोलने की, वो अपने काम में लग गया और मैं फिर आगे बढ़ गया
आगे जा कर मैंने गावं के दो लोग आते देखे उनसे भी कन्फर्म करना उचित समझा, तो उन्होंने भी यही कहा इधर चले जाओ आगे टोपा टॉप हाइवे है
आगे न जाने कौन सा गाँव था हाइवे चकाचक था और मैं साइकल भागाये जा रहा था तभी अचानक सोंधी सोंधी गुड़ बनने की खुशबु आई आगे जाते हुआ देखा इस रोड पर जगह जगह गुड़ बनाया जा रहा था|
भाग नौ – पुलिस को चकमा




उस समय जो फेसबुक लाइव किये थे वही डाउनलोड कर के डाल रहा हूँ , ट्रको का आना जाना देखिये

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