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बुद्दिमान पागल राजा का किला जिसने दिल्ली से सारी जनता को महाराष्ट्र जाने का हुकम दे दिया


आज हमारी टीम पहुँच गई, दिल्ली के एक ऐसे किले पर जिसके राजा ने दिल्ली के राजधानी होने के अस्तित्व पर ही संकट ला दिया था 

आदिलाबाद का ये किला दिल्ली में महरौली-बदरपुर रोड पर तुगलकाबाद विलेज क्षेत्र में स्थित है और किसी ज़माने में ये किला एक किलोमीटर लंबे रास्ते के माध्यम से तुगलकाबाद किले से जुड़ा हुआ था। इस किले का निर्माण सुल्तान गयास-उद-दीन तुगलक के पुत्र सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक द्वारा किया गया था, ये किला दरसल तुगलकाबाद के किले का छोटा संस्करण है मॉडल समझ लो, और इस किले की दीवारे आज की तरह सीधी खड़ी न होकर ढलान वाली है, दीवार भी ऐसी वैसी थोड़े, जितना हमारा एक कमरा होता है उतनी मोटाई है दीवार की, दीवार के टेढ़े होने की वजह से हम, डरते डारते हम इस किले की दीवार पर छिपकली की भांति ऊपर चढ़ पाए, पर ये दीवारें प्राचीन वास्तुकला का अच्छा नमूना है |  


ऐतिहासिक रूप से कहा जाता है कि, मुहम्मद बिन तुगलक को भी सुंदर किलों का बहुत शौक था और उन्होंने अपना अधिकांश समय 'तुगलकाबाद' नामक अपने नए शहर के लेआउट की योजना बनाने में बिताया। अपने पिता की तरह, उन्होंने इस किले का निर्माण जारी रखा और बाद में प्रचुर मात्रा में हरियाली से लदी विशाल एकड़ भूमि पर अपने शहर का विस्तार किया और उस स्थान पर निर्माण कराया, जिसे खिलजी वंश के पिछले शासक अल्ला-उद-दीन खिलजी द्वारा बेकार समझ कर छोड़ दिया था।

 

कहानी से कहानी जुडती चली जाती है, तो बताने का मन कर ही जाता है, दरसल जिस जगह पर जाओ उससे जुडी हर बात, उस जगह को महत्वपूर्ण बनाती है तो हुआ यूँ कि महाराष्ट्र, औरंगाबाद के देवगिरी नाम की जगह पर भिल्लिमा नाम के एक यादव राजा ने एक शहर बसाया बाद में उसे अलाउद्दीन खिलजी ने जीत लिया और वहां से पहुंचा तुगलक वंश के पास और उसने उस देवगिरी का नाम बदल कर कर दिया "दौलताबाद" 

फिर उसे न जाने क्या सनक सवार हुई कि दिल्ली से राजधानी हटा कर दौलताबाद ले जाई जाए, "हट बंचो दिल्ली अब रहने लायक नहीं रही" उस टाइम तो दिल्ली में इतना पोलुशन भी नहीं था, फिर भी न जाने क्यों उसने ये किया, हा जी कोशिश नहीं, "कर दिया" हवा हवाई बातें नहीं, ऐसा नहीं कि खुद जा के दौलताबाद में चले गए बन गए राजा बेटा, साहब तुगलक सम्राट है, तो ऐसे ही थोड़े जाते, हमारी साथ हमारी प्रजा भी जायेगी मतलब दिल्ली की जनता "ओओ सो स्वीट वाला फील",  पर जो नहीं जाना चाहता था उसे भी जबदस्ती ले जाया गया, खैर ले तो जाने लगा, अपनी सारी जनता और सेना को दौलताबाद, लेकिन वहां इस आबादी के जीवित रहने के लिए भाई कुछ था नहीं, न खाने को न पीने को, हालत हो गई ख़राब, उड़ गए तोते 

 

और ऐसे भी भाई दिल्ली वाले दिल्ली के सिवा कहाँ रह सकते हैं, तभी तो मशहूर शायर जौंक साहिब ने खूब कहा हैं “कौन जाए जोंक दिल्ली की गलियां छोड़ कर”, खैर अब वो बात नहीं रही, अब इन गलियों को छोड़ कर लोग ग्रेटर नॉएडा, विदेश हर जगह निकल रहे हैं, हम फिर भटक गए मुद्दे से, तो चलो वापस आते हैं और इसलिए, सुल्तान चाहता तो वहीँ मरने दे सकता था, मरो सालो पर फिर तुगलकी फरमान का क्या होता, सुबह उठ के बोला चलो वापस दिल्ली, बकवास जगह है साली, दो साल के बाद, सुल्तान ने अपनी राजधानी को तुगलकाबाद से वापस दिल्ली स्थानांतरित कर दिया, "लौट के बुद्दू घर को आये" "शाम का भूला" वाली कहावत नहीं बोलेंगे क्योंकि उस यात्रा में न खाना मिला न पानी मिला, तो बहुत से लोग वहीँ रास्ते में भूख प्यास से तड़प कर तड़प कर मारे गए। यही से उसका तुगलक का पतन हो शुरू गया। 


ये गुण उसमे उसके पिता और दादा से आये थे उनकी कहानी और उनके मकबरे पर हम जल्दी ही चलेंगे और लिखेंगे भी उनके बारे में 


आज भी कई लोग आश्चर्य करते हैं कि उसने इतना कठोर कदम क्यों उठाया कहें सब बढ़िया चल रहा था, तो ये टाइप C error उसने किया क्यों, क्योंकि बंदा अपने टैलेंट के लिए जाना जाता था आखिर राजा ऐसे ही थोड़े था, और यहां तक ​​कि अपने शासनकाल के दौरान उस ने कई नये काम किये जिनमे एक दिन उसने सुबह उठ के बोला "सुनो बे चांदी के नहीं अब से ताम्बे के सिक्के चलेंगे सल्तनत में", 

भाई दिल्ली के लोंडे हमेशा से जुगाडू रहे हैं कुछ भी कहो, भाई लोगो ने वो सिक्के घर पर बनाना शुरू कर दिया, क्योंकि तब तांबा था सस्ता और मिल भी जाता था आराम से, कैसे अरे बर्तन वगरह तांबे के ही तो थे आज कल की तरह बॉन चाइना के डिनर सेट थोड़े होते थे, और आज भी दिल्ली के कई इलाकों में तुगलक काल की ये परम्परा अपने पूर्वजों के सम्मान में कुछ लोग जीवित रखे हुए हैं समय समय पर दस पांच के नकली सिक्को की फैक्ट्री आज भी पकड़ी जाती रहती हैं, 


दूसरा बन्दे (मुहम्मद तुगलक) ने इतने टैक्स लगाए तो क्या गलत किया, आज कौन सा कम टैक्स है हगने पर मूतने पर, सवच्छ ये वो  लगता है आज कल की सरकारें वही से कॉपी कर रही है, 

लेकिन बस एक जो कदम था दिल्ली से दौलताबाद राजधानी ले जाना वो भी दिल्ली की आबादी समेत, इस कदम से,  उन्हें अभी भी भारत के सबसे विवादास्पद शासक के रूप में जाना जाता है। और कभी-कभी स्थानीय लोगों द्वारा उन्हें 'मैड किंग' कहा जाता है। आपने सुना ही होगा एक टर्म मशहूर है हमारी बातचीत में "तुगलकी फरमान" इस टर्म का अविष्कारक यही तुगलकी राजा था  

 

पहले आदिलाबाद बना काफी छोटा और फिर धीरे-धीरे आकार लिया जब शहर और उसके लोगों को मंगोलो के हमलों से बचाने के लिए किले की दीवारें बनाई गईं। एक के बाद एक खंड उसमे जुड़ते चले गए विशाल दीवारों के पूरा होने पर, एक गढ़ पैलेस का निर्माण किया गया था, अब राजा तो रहता था तुगलकाबाद वाले बड़े किले में, तो यहाँ कौन रहता था आदिलाबाद में? वहां रहते थे उसके मुख्य दरबारी, मैनेजर किस्म के लोग |

 

आदिलाबाद किले में उर्दू भाषा में प्रसिद्ध 'एक हजार स्तंभों का महल' या 'क़सर-ए-हज़ार सतुन' है, के लिए भी जाना जाता है, हजार स्तम्भ तो अब नहीं बचे, कुछ अवशेष से आपको खुद ही अपने माइंड में वो बनाना होगा  लेकिन इस किले का प्रवेश डिजाइन मुझे खुद को बेहद आकर्षित करता है काफी सुन्दर लगता हैं, आप जाए तो इसके प्रवेश द्वार को ऊपर से अवश्य देखें, एक उत्कृष्ट कृति संरचना बनाने का विचार उस युग के दौरान बहुत लोकप्रिय था, हर राजा सोचता था की कुछ ऐसा बना जाऊ कि दुनिया याद रखे, कुछ कर गुजरू, नाम चाहिए था और यह बात 'ताज महल' जैसे प्रसिद्ध मकबरों सहित कई जगहों पर देखी जा सकती  है। आज,  इसकी दीवारों और पूरी तरह से खंडहर में बदल गई है और एक खंडित संरचना की एक झलक ही मिल सकती है, लेकिन आप इस किले की दिवार पर इस लड़के की तरह खड़े हो जाइए और महसूस करिए, और ऊपर वाली कहानी को अपने मस्तिष्क में पिक्चराइज कीजिये, थोड़ी देर में आपको एक सम्राट वाला फील आ जाएगा 

 
I am the King

MAHARAJA PADHAARNE WALE HAI 
WAAH KYA DARSHYA HAI

किले का मुख्य दरवाजा 


पर्यटक इस स्थल तक साइकल, बाइक,  कारों, बसों और ऑटो रिक्शा के माध्यम से पहुंच सकते हैं। साइकल से जाना हो तो इसके पिछले गेट से जाइएगा, काफी अन्दर तक ले जा पायेंगे और मजा भी आएगा फ्रंट से ले गए तो गार्ड, बाहर ही साइकल खड़ी करवा देगा , और वापसी में साइकल मिल जाए तो प्रसाद बांटने के लिए मंदिर पास ही है, इस साइट में प्रवेश निःशुल्क है और जनता के देखने के लिए प्रतिदिन 0930 बजे से खुला जाता है। वैसे आप लोकल लोग यहाँ इससे पहले भी घुमने आ जाते हैं



KING STYLE ENTRY

तःख्त न सही पत्थर ही सही 








जा नहीं सके कोई बात नहीं विडियो देख लोगे तो लगेगा घूम ही आये 

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