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कोविड में दिल्ली से ऋषिकेश साइकल यात्रा | भाग चार – घर

 भाग चार – घर 


सबसे कठिन काम होता है परिवार जन की अनुमति लेना, पर ये हमारे अपने खुद के हाथ में होता है, निर्भर करता है आप कैसी इमेज बना कर रख रहे हैं घर पर, अब आप खुद ही बच्चो जैसी हरकते करोगे, तो घर वाले क्या ही भेजेंगे, 

इमेज अच्छी बनाओ, घर वाले कभी नहीं रोकेंगे, घंटे दो घंटे अपने परिवार जन के साथ बैठो उनसे गंभीर विषयों पर वार्तालाप करो, और थोड़ी बुद्धिमता के विचार उनके सामने रखो.. कैसे लोग गलत काम कर लेते हैं...कैसे कैसे नशे आजकल लोग कर रहे है, पता नहीं युवा पीढ़ी को क्या हुआ है, और अंत में सबसे आवश्यक ”उच्छृंखलता” इससे दूर रहना चाहिए ये अपने परिवार जन को विश्वास दिलाना अत्यंत आवश्यक है, कि मैं ”उच्छृंखल” नहीं हूँ, और हाँ घर पर हर समय बच्चो जैसी हरकतें करना बंद करो, तभी कुछ हो पायेगा, मेरी जानकारी में बड़ा प्रतिशत ऐसे लोगो का  हैं कि जिन्हें उनके घरवाले कहीं भी भेजने से मना ही कर देते हैं उसके जिम्मेदार वे खुद हैं उन्होंने स्वयं ये इमेज बनाई है | 


खैर मैं मुद्दे से भटक गया, ज्ञान पेलने लगा, यहाँ बड़े बड़े ज्ञानी है और मुझे तो उनसे ज्ञान लेना चाहिए घुमक्कड़ी पर,  क्षमा 


अभी एक और विकराल कार्य था जो मुझे सिद्ध करना था, वो था “माँ” को बताना, मेरी माँ के बारे में मैं आपको बता दूं वो संगीत से शिक्षित, साहित्य में घनघोर रूचि वाली है, और वो गृहणियों वाली सारी कलाओं में हस्तसिद्ध हैं, ऊपर से सरल नहीं हैं, पर जैसा कि मैंने ऊपर बताया मेरी इमेज अच्छी है, तो काफी हद तक मैं विश्वस्त था, पर ये बात सार्वभोमिक सत्य है, आप चाहे अपने जीवन में कितने ही बड़े पद पर क्यों न पहुँच जाए, कितनी ही उपलब्धिया प्राप्त कर लें या आपकी कितनी ही उम्र हो जाए, आपको भले नोबल पुरस्कार मिल जाए, आप प्रधानमंत्री बन जाए पर माँ माँ है, और उनको आपकी चिंता रहती है .. पूरे ब्रह्माण्ड में एक यही प्रेम शाश्वत सत्य है |


घर पर माँ को बोला  "अम्मा मैं ऋषिकेश जा रहा हूँ " 

माँ ने कहा  " ऋषिकेश ! कब कैसे किसके साथ क्यों" 


अम्मा ने सारे प्रश्नवाचक अव्यय एक पंक्ति में समाहित कर वाक्य पूर्ण किया, इस तरह कि भाषा विन्यास का गौरव या तो हिंदी भाषा को प्राप्त है और सर्जन का हिन्दुस्तान की महिलाओं को 

 

कब का जवाब आसान था  "कल "


कैसे का जवाब थोडा भारी  " साइकल से" इसे सुनकर पूरी यात्रा ख़तरे में पड़ गई, मुश्किल को थोडा हल्का किया, हल्के से ये बोलकर “कि चला जाऊँगा कोई बड़ी बात थोड़े है”


किसके साथ  "अकेले" अगर ये बोल देता 

और माँ को ये बताता कि अकेला जा रहा हूँ, वो भी कोविड में, तो जाना असंभव था, बिना चिल्लम चिल्ली जाना था, इसलिए महाभारत के सांतवे पर्व  का द्रष्टन्त लिया "अश्वत्थामा हतोहतः, नरो वा कुञ्जरोवा


सो मैंने भी बोल दिया  "जा रहा हूँ आदित्य भी होगा वहां" 


बाकि बड़े भैया को बता दिया था, सब सच सच 


भाग पांच - निंद्रा 


तो वो रात आ गई, अगली सुबह निकलना था रात आँखों में ही कट गई, नींद भी आने का नाम नहीं ले रही थी, एक या दो बजे झपकी लगी तो पहुँच गया ऋषिकेश, 

मैं खड़ा हूँ और चारो तरफ आकर्षक पहाड़, कभी मैं किसी पहाड़ कि चोटी पर खड़ा हूँ तो कभी मैं गंगा किनारे पहुँच गया, गंगा मैया का प्रबल प्रवाह, इतने सुन्दर मनोहारी द्रश्य में पीछे से पुलिस वाला आ गया, यहाँ क्या कर रहा है? बे..किसने आने दिया? पता नहीं है कोविड चल रहा है...


खैर नींद और स्वपन के ऊपर रिसर्च कर के मैंने सूत्र बनाया है कि सपने में होने वाली क्रियाएं और वास्तविक में सोये शरीर में एक  लगभग मिलीमीटर बराबर एक मीटर है, और एक मिलीमीटर से अधिक हिले तो मतलब अनंत दूरी तक जा सकते हो, अर्थात अगर मैं स्वपन में एक कदम रखता हूँ तो पैर का अंगूठा जरा सा हिलेगा और हमें स्वपन में वास्तविक एहसास होगा कि हमने कदम रख दिया है, इस बात को गंभीरता से न ले लेना...ऐसी मजेदार खोजें मैं हर दिन रात करता रहता हूँ 😊


खैर, ऐसे ही जैसे ही  गंगा तट वाले उस पुलिस वाले ने मुझे डंडा मारा तो मुझे शरीर में झटका सा लगा और बिस्तर पर पड़े पड़े, मैं सच में हिल गया और नींद टूट गई,  पानी पिया, मोबाइल, व्हाट्सएप चेक किया, आँखों में ही वो रात कटी, सुबह एक दो झपकी लगी भी पर फिर सुबह तीन बजे के अलार्म ने वो झपकियाँ भी तोड़ दी  |


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