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कोविड में दिल्ली से ऋषिकेश साइकल यात्रा | भाग दो – मित्र

 दिनांक 23 अक्तूबर 2020 यात्रा


पिछले भाग में आपने पढ़ा होगा कि कोविड का समय चल रहा था, लॉकडाउन लगा हुआ था ... आगे पढ़िए
भाग दो – मित्र
आदित्य भाई मेरे अच्छे मित्रो में से हैं, वैसे तो उनसे साइकल राइड को लेकर हर दूसरे हफ्ते बात हो जाया करती है, किन्तु उनकी एक आदत है, वो कभी कभी गायब हो जाते हैं, हफ्तों महीनो के लिए, क्योंकि वो बड़े वाले घुमक्कड़ है, उनका घुमक्कड़ी का तरीका ये है वो अपनी कार उठाते है, उसमे डालते है राशन पानी, कार की पिछली सीट को बेड में कन्वर्ट कर लेते है, और किसी भी जगह पर फिर महीने के लिए जा कर टिकते हैं, कभी कार में रुकते है, तो कभी होटल में|
एक शाम मैंने अपने मित्र आदित्य भाई को फ़ोन किया, आपसी कुशलक्षेम के पश्चात उन्होंने बताया
“मैक्स भाई मैं ऋषिकेश में हूँ, काफी दिनों से, कंपनी ने वर्क फ्रॉम होम कर दिया है वो भी दो तीन महीनो के लिए तो मैंने सोचा जब घर से ही काम करना है तो घर तो कहीं भी हो सकता है तो इस लॉकडाउन के लगने से पहले ही यहाँ ऋषिकेश में एक घर किराये पर ले लिया है, तपोवन में ऊपर कि तरफ झरने के बराबर में, झमझम आवाज आती रहती है हर समय, गाडी में सारा राशन और लैपटॉप वैगरह डाल के यहाँ डेरा डाल दिया है, एक रूम है किचन है, गैस बर्तन सब है, खुद बना रहा हूँ खा रहा हूँ, रोज शाम को पैदल वाक् पर नीम बीच हो आता हूँ, बस अपना तो यही चल रहा है ,
तुम बताओ दिल्ली के क्या हाल है ?
ये सुनकर मुझे तो ईर्ष्या कम रोमांच हो आया, क्या जिंदगी चल रही है भाई की कोविड काल में भी फुल मौज, दिमाग है भाई दिमाग! |
खैर मैंने भी उन्हें बता दिया आजकल दिल्ली ऐसी हो रखी है, जैसी कभी नहीं थी साफ़ वातावरण, कोई ट्रफिक नहीं, सड़कों पर मोर नाच रहे हैं, न जाने कौन कौन से विदेशी पंछी छतों की मुंडेर पर दिख रहे हैं! कुछ जगह तो सुना है हिरण भी आ गए है! लगता है अब बस शेर चीता और रह गया है, और हम दिल्ली की ट्रफिक विहीन सड़कों पर पुलिस को कभी चकमा दे, तो कभी मासूम चेहरा दिखा के दबा के साइकलिंग कर रहे हैं, पूरी दिल्ली छान दी है कुछ बचा है नहीं, मेरे लिए अब यहाँ |
तो फोन के दूसरी तरफ से उनकी आवाज़ आई
“तो इधर आ जाओ”
कानों में ये वाक्य सुनते ही मन में लड्डू फूटा, अँधा क्या चाहे दो आँखे,
मन बोला चला जा बेटा ये मौका फिर न मिलेगा, भोले बाबा की नगरी बुला रही हैं और क्या चाहिए तुझे |
तुरंत गूगल मैप खोला डाला, डेस्टिनेशन में डाला तपोवन ऋषिकेश, जिसकी दूरी गूगल बाबा ने दिखाई 237 किलोमीटर, अभी तक इतनी लम्बी यात्रा एक दिन में मैंने साइकल से नहीं की थी |
सौ, एक सौ बीस तो न जाने कितनी बार कर चुका था, पर मुझे अपनी टांगो पर पूरा विश्वास था कि मैं कर लूँगा, तो मन में निश्चय कर लिया कि चला ही जाए, सौ डेढ़ सौ किलोमीटर तो टाप ही लेता हूँ, साठ सत्तर किलोमीटर ही एक्स्ट्रा है फिर पूरा दिन है मेरे पास, आराम आराम से चलूँगा, रुकता रुकाता पहुँच ही जाऊँगा
एक बार फिर भी मित्र से सलाह लेने के नाते मैंने उनसे पूछा
“कैसे आना होगा? मैं तो साइकल से आऊंगा आपको पता ही है”
“उन्होंने कहा ई पास बनवा लेना, मैं भी वही बनवा कर, यहाँ आया था”
अब मैं तो कल परसों में ही निकलने का सोच लिया था अपने मन में, तो मैंने बता दिया कि, मैं तो एक दो दिन के अन्दर में ही आऊंगा तो ई पास
तो बन लिया ...
उन्होंने कहा “देख लो! .. जब मैं आ रहा था तो कार और बाइक वालो को तो लौटा रहें थे यहाँ के बोर्डर से, चेकिंग काफी टाईट है, मेरे पास तो ई पास था, तो जाने दिया, अगर पास बन जाए तो अच्छा, वरना देख लो कहीं दिक्कत न हो जाए”
खैर पास नहीं बना, एप्लाई ही नहीं किया बनता कहाँ से
भाग तीन – होय वही जो राम रचि राखा
फोटो में मेरे ऋषिकेश पहुँचने पर आदित्य भाई स्विमिंग करते हुए सनग्लास लगा कर ...

क्रमश .... 



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