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कोविड में दिल्ली से ऋषिकेश साइकल से | भाग एक - कोविड काल

23 अक्तूबर 2020 की यायावरी दिल्ली से ऋषिकेश  

भाग एक - कोविड काल
ये यात्रा वर्णन उस समय का है, जब वो कोविड काल चल रहा था, कि सम्पूर्ण लॉकडाउन समाप्त हो चुका था, परन्तु आंशिक कर्फ्यू अभी भी लगा हुआ था, जनता पर तरह तरह की बंदिशे लगी थी, पर इन् दिनों को भी लोग तो एन्जॉय कर रहे थे, पर सरकार मानो कलपी पड़ी थी, रोज किसी न किसी बात पर नया बैन लग रहा था, एक राज्य से दूसरे राज्य जाने की मनाही थी, जाओ भी तो ई-पास एप्लाई करो, उनका मन हुआ तो पास देंगे, वरना बैठो घर, उसके बाद भी आर. टी. पी. सी. आर. आवश्यक था,और अगर पॉजिटिव आ गए जिसके चांस अधिक थे, तो खुद तो कोठरी में बंद हुए ही हूए, पूरी गली, मोहल्ले को लॉक करवा दिए, आस पास के एरिया में भी घूमते हुए लोगो को डर लगता था, ऐसे ऐसे विडियो मार्केट में आये हुए थे! कि अन्दर तक भय समाया हुआ था, वायरस या बीमारी के नहीं पुलिस की पिटाई के | ऐसे ही समय में मैंने ये घुमक्कड़ी करी थी ...
जगह जगह पुलिस के बैरिकेड्स लगे हुए थे | कुछ गलियों को तो सील कर दिया गया था बाकायदा,
बस सुना करते थे, कि उनमे से किसी घर में कोई कोविड पॉजिटिव मिला है, ऐसे घरो वाली गलियों को टीन टप्पर लगा कर सील कर दिया जाता और बाहर दो पुलिस वाले तैनात, कुल मिलाकर फुल लॉकडाउन तो खुल गया था पर खौंफ का माहौल हर तरफ बनाया हुआ था, घर से बाहर निकलो तो अलग सी ख़ामोशी छाई रहती थी |
ये भय ख़ामोशी सब घर के बाहर था, घर के अन्दर का सीन कुछ अलग ही चल रहा था ...अनुभूत तो आप सभी ने भी किया है, पर पढ़िए मेरे शब्दों में..
इधर भारतीय परिवार भिन्न भिन्न तरीकों से कोविड से लड़ रहे थे, किसी के अन्दर का संजीव कपूर जागा तो किसी का मोहम्मद रफ़ी, कुछो में एम्. ऍफ़. हुसैन की आत्मा आ गई, और हर घर में एक कॉल सेंटर खुल चुका था, सुबह सवेरे से मोबाईल की रिंगटोन बजने बजाने का सिलसिला शुरू हो जाता था, मजे की बात ये कि जो पीढ़ी मोबाइल के विरुद्ध रहा करती थी उन्होंने इस समय इस यन्त्र का भरपूर उपयोग किया,
पापड़, कचरी व् अचार की रेसिपी शेयर से लेकर कोविड के देसी इलाज यहीं खोजे और बांटे जा रहे थे, कौन ऐसा बचा जिसने कोविड की पहला भारतीय संस्करण वैक्सीन काढ़ा न पिया हो, हर इंसान अपने बनाए जुगाड़ों को विवेचित करने में ज्यादा दिलचस्पी ले रहा था, हम तो ये कर लेते है, हमारा ये तो ये कर लेता है, हमने तो ये कर रखा है ... यही सब चल रहा था फ़ोन पर ...
इधर उन उन भूले बिसरे दूर तलक के रिश्तेदारों, दोस्तों तक को फ़ोन कर डाले जिनके रिश्ते शब्द में नहीं, वाक्य में बोले जाते हैं , रोज सुबह शाम इतने कॉल किये जाते थे, कि फ़ोन कंपनियों का सर्वर भी त्राहिमाम कर रहा था |
तस्वीर तपोवन में ऊपर एक छोटे जल प्रपात की है, स्विमिंग का भयंकर शौक होने के कारण मुझे मेरे मित्र क्रोकोडाइल भी कहते हैं तो वही क्रोकोडाइल पोज बनाने का प्रयास किया.....



ये भाग सिर्फ भूमिका में चला गया तो इस भाग में यात्रा का भाग काफ़ी कम है, पर परिस्थितियों का विवेचन आवश्यक था पर अगले भाग में यात्रा वर्णन अवश्य मिलेगा ...
पढ़ते रहिये ...
विडिओ में देखने के लिए आप मुझे यूट्यूब पर yayavar max के नाम से सर्च कर सकते हैं,


https://www.youtube.com/channel/UCqKNTQZqSo05AqNwqVpzkyA


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