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कोविड में दिल्ली से ऋषिकेश साइकल यात्रा | भाग तीन

 भाग तीन –  होय वही जो राम रचि राखा 


पहली सोलो यात्रा थी तो अन्दर ही अन्दर घबराहट तो उमड़ उमड़ कर आ रही थी, ऊपर से साइकल से जाना वो भी कोविड काल, बिना ई पास के जाना, मन में ख्याल भी आ रहा था की उत्तराखंड के बोर्डर पर पहुँच गया हूँ और जगह जगह पुलिस है और मुझे पकड़ लिया गया है, और पूछताछ चल रही है कहाँ से आया है? क्यों आया है ?


ऐसे समय पर माता सती और शिव जी के बीच हुआ प्रसंग याद आया, 


होइहि सोइ जो राम रचि राखा । को करि तर्क बढ़ावै साखा


  माता सती को विश्वास नहीं हुआ, कि राम ही परम ब्रह्म है, तब भगवान् शिव ने उनसे कहा, होता वही है जो राम ने रच रखा है जो होगा, उन्ही के निमित्त से होगा अब तुमसे कौन तर्क कर बात बढाए, 


वैसे इस दोहे से ये तो पता चलता है आदमी कितना ही ज्ञानी ध्यानी हो, देवो का देव महादेव हों आदिकाल से स्त्री से बहस करने से बचता ही है|


तो मैंने भी यात्रा को “होए वही जो राम रचि राखा पर छोड़ा” और जाने की तैयारी शुरू की,

बैगपैक ले लिया, दो जोड़ी कपडे रखे सर्दी के रख लिए, बात अक्तूबर माह की है, हल्की ठण्ड तो थी सुबह शाम की और ऋषिकेश में और अधिक होगी ये भी मन में था, पॉवर बैंक रख लिया, ब्लूटूथ स्पीकर रख लिया,  बैग को साइकल की ख़राब ट्यूब से करियर पर टाईट से बाँध दिया, पंचर किट, हवा भरने का पम्प भी रख लिया,


उस यात्रा में मैंने गिनी चुनी फोटो ली, अच्छे से सेल्फी तक न ली, लेकिन उस समय की सामान सहित साइकल की फोटो जो मैंने जाने से पहले ली थी और एक फोटो हरिद्वार में ली, वो मैंने डाली हुई है आप  देख सकते हैं |


सुबह सवेरे जल्दी निकलने का विचार था, अँधेरा होगा ही , तो साइकल की आगे पीछे की लाईट रात को ही चार्ज कर ली, 

जितने भी लोग साइकलिंग करते हैं या करने का विचार कर रहे हैं मैं उन सभी से कहूँगा कि आप अपनी साइकल में आगे पीछे लाईट अवश्य लगाए और हेलमेट भी हमेशा पहने, अँधेरे में तो लाईट लगाए ही, हल्का उजाला होने पर भी लगाए, पीछे से आने वाले वाहनों का ध्यान उस ब्लिंक करती लाईट पर चला ही जाता है तो वो स्वत: ही आपको बचा कर निकलेगा या गति धीमी कर लेगा 


इधर मैंने साथ में मनोरंजन के लिए अपना ब्लूटूथ स्पीकर भी चार्ज कर के रख ही लिया था, रास्ता चाहे जितना बेहतरीन हो अगर उस रास्ते में किशोर दा की गोल्डन आवाज में “मुसाफिर हूँ यारो” या लकी अली का “शामों सहर” भी सुनने को मिल जाए तो सफ़र का मजा दुगना हो जाता है| 


अब पेट पूजा की बात, इधर सम्पूर्ण भारत वर्ष में कोविड काल को आपदा काल न समझ एक उत्सव की तरह मनाया जा रहा था,  भारत के हर घर में रोज पकवान बन रहे थे, पूरे देश में मैदा, चिकनाई को निबटाने का जैसे अभियान छिड़ा हुआ था, जिसने कभी रसोईघर की तरफ कदम न बढाया था, वो भी मास्टर शेफ़ बने हुए थे | इसी क्रम में अपने भी घर में एक दिन पहले ही मटर छोले कुलचे बने थे, तो उन्ही बचे दो कुल्चों के बीच मटर छोले लगा के अपन ने रोल बना के पैक कर लिए, घर के किसी सदस्य का एक्पेरिमेंट में बना एक दो दिन पुराना वाइट क्रीम पास्ता भी एक छोटे टिफिन में रख लिया |


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