आज साइक्लोपैथ राइडर्स ने, पंडाला हिल्स / Leopard Hills का प्लान बनाया, काफी राइडर्स दिल्ली में अलग अलग ग्रुप्स से इस जगह जा चुके थे तो हमने सोचा हम वहां जायेंगे वीकडे में ताकि भीड़ कम मिले तो सीधा मानेसर रोड पर चलते चलते हम अपने गंतव्य के नजदीक पहुँचने ही वाले थे,
दिल्ली से पाण्डला हिलल्स लेपार्ड हिल्स के लिए मानेसर हाईवे से जैसे ही हम मुड़े , आगे सड़क के किनारे पर पड़े विशालकाय पाइपो पर कमर टिका कर जमीन पर बैठा एक शख्स अपनी साइकल के साथ नजर आया, साथ मे एक और साइकलिस्ट, पहली नजर में लगा दोनों साइकिलिस्टों वाली मस्ती कर रहें हैं शायद थक गए होंगे रेस्ट कर रहे हो या फोटोशूट, फिर भी शांत सुनसान इलाके में कोई साइकलिस्ट मिल जाये वो भी बैठा हुआ तो साइकलिस्ट लोग जाकर पूछते जरूर है आल वेल ना... जैसे जैसे हम उनके नजदीक जा रहे थे, उनकी स्थिति मस्ती की लग नहीं रही थी , बिखरे बेतरबीब कपडे, मिट्टी से सने हुए, साथ ही सारे कपड़े गीले थे , मस्तिष्क में तुरंत कौंधा की गड़बड़ है बॉस । तुरंत उत्तर कर पूछा सब सही है ना , बैठे साइकलिस्ट से धीरे से कहा हाँ बस , dizziness हो गई , चक्कर सा आ गया |
इतना सुनने की देर थी कि हमारी टीम लग गई अपने काम पर । तुरंत मेडिकल किट निकाली गई, एस वी मैडम ने कॉटन सेवलोन से खरोंचे साफ की, उमंग भाई ने इनरजल रेडी कर पिलाया, दक्ष ने प्रोटीन बार प्रस्तुत किया, साथ मे एस वी मैडम की साइकलिस्ट सुरक्षा ज्ञान गंगा बह ही रही थी, बातों में पता चला बैठे शख्स का नाम JST है शोर्ट फॉर्म में , और सर् 25 से 30 किलोमीटर दूर अपने घर से यहां पाण्डला हिल्स आ रहे थे लेकिन किसी मेडिकल प्रॉब्लम , या बीपी की परेशानी की वजह से साईकल से जैसे ही उतर कर खड़े हुए चक्कर खा कर गिर पड़े, उसके बाद उनके साथी साइकलिस्ट से उनपर पानी डाला और साइड में पाइपो की टेक लगा कर बिठा दिया।
खैर अब तक यहाँ माहौल ट्रेजडी से कॉमेडी में बदल चुका था , हमें उनका नाम JST की जगह GST लगा , तो चुटकुलों की बरसात हो गई, और हम सभी के साथ JST सर के चेहरे पर भी मुस्कान तैर गई , हम सभी यहां पंडाला हिल्स जाने आये थे ये अभी तक हम भूल चुके थे, लेकिन तब तक उनके साथी साइकलिस्ट ने जो उबर बुलाई थी वो आ गई , तो हम सभी ने भी आगे बढ़ने का विचार किया और एक ग्रुप फोटो JST सर के साथ लेकर निकल पड़े अपनी मंजिल की तरफ़
न जाने हम कितनी बार गिरे होंगे, और कितनी बार खड़े हुए है, किसी ने पैर तुडाये किसी ने सर, मैं खुद कन्धा तुडवा कर आज भी साइकलिंग कर रहा हूँ , मिर्जा अजीम बेग अजीम ने क्या खूब कहा है इस सूरतेहाल के लिए
"गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में,
वो तिफ्ल क्या गिरे जो घुटनों के बल चले"
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