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आज की राइड म्यूटिनी मेमोरियल दिल्ली रिज एरिया भुतहा जगह

कहा जाता है कि यहां ब्रिटिश सैनिकों के कई सिरविहीन शव मिले थे और उन्हीं में से एक ब्रिटिश सैनिक को लोगों ने उसकी सिगरेट के लिए रोशनी मांगते देखा है। इस सोल्डर ने कभी किसी को चोट नहीं पहुंचाई है। वह आम तौर पर म्यूटिनी हाउस को मुख्य सड़क से जोड़ने वाली सड़क पर घूमते हुए पाया जाता था।

दिल्ली में कई इमारतें हैं, जो सन् 1857 के विद्रोह की गवाह रही हैं। आजादी की छटपटाहट से उभरे निशान इन इमारतों पर आज भी देखे जा सकते हैं। इस विद्रोह के दौरान मारे गए दिल्ली फील्ड फोर्स के सैनिकों की याद में 1863 में एक इमारत बनाई गई थी। यह इमारत हिंदूराव अस्पताल के पास है। इसका नाम है म्यूटिनी मेमोरियल। इसे अजीतगढ़ के नाम से भी जाना जाता है।

पत्थर से बनाई गई मीनार अष्टभुजाकार है। इसके अंदर एक सीढ़ी भी है। दूर से यह मीनार किसी चर्च की तरह नजर आती है। इस मीनार पर लगे पत्थरों पर अलग-अलग यूनिटों और अफसरों-सैनिकों के नाम लिखे हुए हैं। विद्रोह में मारे गए अंग्रेज और भारतीय सैनिकों के नामों के अलावा, उनकी संख्या और रैंक भी पत्थरों पर हैं। कितने अधिकारियों की मौत हुई, कितने घायल हुए और कितने इस लड़ाई में लापता हुए इसका लेखा-जोखा इस इमारत पर देखा जा सकता है।
अधिकारी और सैनिकों की संख्या अलग-अलग बताई गई है। इसमें अंग्रेज और भारतीय दोनों अधिकारियों और सैनिकों को शामिल किया गया है। 30 मई से 20 सितंबर 1857 तक जान गंवाने वाले दिल्ली फील्ड फोर्स के अधिकारियों और सैनिकों के बारे में पूरी जानकारी पत्थरों पर उत्कीर्ण है। म्यूटिनी मेमोरियल के पास ही अशोक स्तंभ है, जिसे फिरोजशाह तुगलक मेरठ से लाकर यहां खड़ा किया था। इस स्तंभ से म्यूटिनी मेमोरियल की ऊंचाई ज्यादा रखी गई थी।









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